देहरादून, 2 अक्टूबर। एक ओर जहां उत्तराखंड के युवा रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है, तो वहीं दूसरी ओर ऐसी खबर सामने आ रही है जिसे सुनकर आप यहीं यही कहेंगे कि क्या इसी दिन के लिए ही हमारे पूर्वजों ने पृथक उत्तराखण्ड बनाया था। दरअसल पूरा मामला डाक विभाग में चल रही बीपीएम (ब्रांच पोस्ट मास्टर) एवं एबीपीएम (असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर) के पदों पर चल रही भर्ती प्रक्रिया का है, जिसमें नियुक्त 98 फीसदी युवा हरियाणा और पंजाब के है। हैरानी की बात तो यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में डाकघरों का जिम्मा संभालने जा रहे इन ब्रांच पोस्ट मास्टर, असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर के पदों पर उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले महज 3 युवाओं को ही नियुक्ति मिली है।
98 फीसदी पदों पर पंजाब और हरियाणा के युवक
कहावत है कि पहाड़ का पानी और जवानी काम नहीं आती। एक ओर जहां उत्तराखंड के युवा रोजगार की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं वहीं दूसरी ओर आज ऐसी खबर सामने आ रही है जिसे सुनकर आप यहीं सोचने को विवश हो जाएंगे कि क्या ऐसे दिन देखने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने पृथक उत्तराखण्ड बनाया होगा। दरअसल पूरा मामला डाक विभाग में चल रही बीपीएम (ब्रांच पोस्ट मास्टर) एवं एबीपीएम (असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर) के पदों पर चल रही भर्ती प्रक्रिया का है, जिसमें नियुक्त 98 फीसदी युवा हरियाणा और पंजाब के है। हैरानी की बात तो यह है कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में डाकघरों का जिम्मा संभालने जा रहे इन ब्रांच पोस्ट मास्टर, असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर के पदों पर उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले महज 3 युवाओं को ही नियुक्ति मिली है। चलिए अब आपको पूरा मामला विस्तार से बताते हैं।
गणित में 100 में से 99 नंबर, मगर प्रतिशत निकालना भी नहीं आता
बताते चलें कि डाक विभाग में ब्रांच पोस्ट मास्टर एवं असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर के पदों पर नियुक्ति हाईस्कूल की मेरिट के आधार पर की जाती है, इसके लिए अलग से लिखित परीक्षा या साक्षात्कार नहीं कराया जाता है। इन अभ्यर्थियों में से अधिकांश ने हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट गणित में 100 में से 99 अंक हासिल किए हैं परंतु इनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्हें प्रतिशत तक निकालना नहीं आ रहा है। एक ओर जहां उच्च अंक हासिल किए ये सफल अभ्यर्थी प्रतिशत तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
इन युवकों को हिंदी भी ठीक से नहीं आती
इतना ही नहीं हरियाणा एवं पंजाब के ये नियुक्त अभ्यर्थी ना तो स्थानीय लोगों की बोली भाषा समझ पा रहे हैं बल्कि उन्हें हिंदी भाषा भी ढंग से लिखनी बोलनी नहीं आ रही है। बड़ा सवाल यह भी है कि ये युवा कैसे पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित डाकघरों को संचालित कर पाएंगे तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग इन्हें अपनी बात किस तरह समझा पाएंगे, ये आने वाला समय ही बताएगा।